श्राद्धकाल में श्रीमद्भागवत, पितृसूक्त आदि का पाठ करने का विधान है। इनसे मन, बुद्धि एवं कर्म की शुद्धि होती है तथा पुण्य की प्राप्ति होती है।
श्राद्धकाल में पूर्वजों की मृत्यु तिथि के दिन ब्राह्मण को निमंत्रण देकर भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा देकर श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
इस दिन पांच पत्तों पर अलग-अलग भोजन सामग्री रखकर पंचबलि करें। ये हैं - गौ बलि, श्वान बलि, काक बलि, देवादि बलि तथा चींटियों के लिए श्राद्ध।
श्राद्ध में एक हाथ से पिंड तथा आहुति दें परंतु तर्पण में दोनों हाथों से जल देना चाहिए।
अमावस्या का श्राद्ध उन सभी पितरों के लिए है जिनकी मृत्यु की तिथि याद नहीं है या जिन पितरों को हम नहीं जानते परंतु वो हमारे पितरों मैं से ही हैं | अमावस्या के दिन गीता का सप्तम अध्याय व पितरों दोष निवारण स्त्रोत का पाठ करना चाहिये और ब्राह्मण को निमंत्रण देकर भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा देकर सभी पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए। इससे सभी पितरों की आत्मा को मुक्ति व शान्ति मिलती है तथा पितृदेव प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से मनुष्य के दुख-कष्ट दूर हो जाते हैं।
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